अरावली को किससे खतरा? ‘Save Aravali’ के पीछे की पूरी सच्चाई
संक्षेप: सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली की नई परिभाषा तय करने के बाद राजस्थान सहित उत्तर भारत में Save Aravali अभियान तेज हो गया है। इसमें पर्यावरणविदों के साथ अब राजनीतिक दिग्गज भी शामिल हो रहे हैं।
दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में शुमार अरावली अब संकट में है। सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2025 के फैसले के बाद शुरू हुआ #SaveAravalli अभियान तेजी से फैल रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 18 दिसंबर को अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल पिक्चर बदलकर इस मुहिम में शामिल हो गए। उन्होंने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि अरावली की नई परिभाषा पर पुनर्विचार किया जाए।
आखिर ये Save Aravali कैंपेन है क्या? इसकी पूरी कहानी हम बता रहे हैं।
अरावली क्यों है बेहद ज़रूरी?
अरावली पर्वतमाला राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली तक फैली हुई है। यह थार रेगिस्तान को पूर्व की ओर बढ़ने से रोकती है।
ये पहाड़ियां भूजल रिचार्ज करती हैं, प्रदूषण कम करती हैं और दिल्ली-एनसीआर की हवा को साफ रखने में मदद करती हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, अरावली के बिना उत्तर भारत में धूल भरी आंधियां बढ़ेंगी और रेगिस्तान फैल सकता है। दशकों से अवैध खनन और अतिक्रमण ने इन पहाड़ियों को नुकसान पहुंचाया है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: क्यों उठी चिंता की लहर?
20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की कमेटी की सिफारिशें स्वीकार कीं। इसके तहत अब केवल 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली संरचनाओं को ही ‘अरावली हिल’ माना जाएगा।
आलोचकों का कहना है कि इससे अरावली का 90 प्रतिशत हिस्सा संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएगा। कोर्ट ने नए खनन लीज पर रोक लगाई है और सस्टेनेबल माइनिंग प्लान बनाने का आदेश दिया है।
लेकिन कई लोग मानते हैं कि यह परिभाषा खनन लॉबी को फायदा पहुंचाएगी। कांग्रेस नेता अजय माकन ने भी इसे जलवायु संकट बताया है।
क्या है सेव अरावली मुहिम?
11 दिसंबर 2025 को अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस पर पर्यावरणविदों और नागरिक समूहों ने ‘अरावली विरासत जन अभियान’ शुरू किया। यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के जवाब में लॉन्च हुआ।
सोशल मीडिया पर #SaveAravalli हैशटैग ट्रेंड कर रहा है। लोग अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदलकर मुहिम से जुड़ रहे हैं।
सेव अरावली ट्रस्ट जैसे संगठन लंबे समय से पेड़ लगाने और जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं। अब यह अभियान सड़कों तक पहुंच गया है।
वन्यजीवों और इकोसिस्टम पर क्या बीतेगी?
बात ये है कि अरावली सिर्फ पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि तेंदुए (Leopards), लकड़बग्घे और सैकड़ों तरह के परिंदों का घर है। अगर पहाड़ कटेंगे, तो ये जानवर शहरों की तरफ भागेंगे।
जंगलों के कम होने से इस इलाके का तापमान और बढ़ेगा। ज़रोरी बात यह भी है कि अरावली की पहाड़ियां बारिश को खींचने में मदद करती हैं, इनके बिना सूखा पड़ने का डर बढ़ जाएगा।
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अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट
सकारात्मक पहलू यह है कि जून 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट’ लॉन्च किया। यह अफ्रीका की ग्रेट ग्रीन वॉल से प्रेरित है।
इसका उद्देश्य अरावली के आसपास हरी पट्टी बनाना, जलाशयों को बहाल करना और जैव विविधता बढ़ाना है। ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान को भी इसमें जोड़ा गया है।
लेकिन आलोचक कहते हैं कि नई परिभाषा इस प्रोजेक्ट को कमजोर कर सकती है। क्योंकि जब पहाड़ ही अरावली की लिस्ट से बाहर हो जाएंगे, तो वहां पेड़ कौन लगाएगा?
हम और आप कैसे मदद कर सकते हैं?
और हां, इस मुहिम का हिस्सा बनने के लिए आपको सिर्फ सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की ज़रूरत नहीं है। आप चेंज.ऑर्ग (Change.org) पर चल रही पिटिशन साइन कर सकते हैं।
गहलोत ने कहा कि अरावली उत्तर भारत की सुरक्षा कवच है। इसके बिना दिल्ली में धूल उड़ेगी और पानी की कमी बढ़ेगी। नागरिक समूह अब गाँव-गाँव जाकर लोगों को इस खतरे के बारे में बता रहे हैं।
नतीजा ये है कि अरावली को बचाने की लड़ाई अब सिर्फ पर्यावरणविदों की नहीं, बल्कि हर आम आदमी की ज़िम्मेदारी बन गई है। Save Aravali मुहिम का मकसद इन पहाड़ों को आने वाली पीढ़ी के लिए बचाना है।
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FAQs
Save Aravali कैंपेन आखिर शुरू क्यों हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की जो नई परिभाषा दी है, उससे लोगों को डर है कि ज़्यादातर पहाड़ माइनिंग के लिए खुल जाएंगे। इसलिए लोग इसे बचाने के लिए साथ आए हैं।
अरावली की नई परिभाषा से क्या नुकसान हो सकता है?
बात ये है कि अब सिर्फ 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली माना जाएगा। इससे करीब 90% हिस्सा संरक्षण से बाहर हो सकता है, जहाँ माइनिंग बढ़ सकती है।
क्या अरावली खत्म होने से दिल्ली-NCR में गर्मी बढ़ेगी?
बिल्कुल! अरावली रेगिस्तान की गर्म हवाओं को रोकती है। अगर ये नहीं रही, तो दिल्ली और हरियाणा में धूल भरी आंधियां और गर्मी बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी।
ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट क्या अरावली को बचा पाएगा?
कोशिश तो यही है कि अफ्रीका की तर्ज पर यहाँ पेड़ों की दीवार बनाई जाए। लेकिन अगर माइनिंग बढ़ती है, तो इस प्रोजेक्ट का फायदा मिलना मुश्किल हो जाएगा।
मैं इस मुहिम में कैसे शामिल हो सकता हूँ?
आप सोशल मीडिया पर #SaveAravalli का इस्तेमाल कर सकते हैं, पेड़ों की कटाई के खिलाफ चल रही पिटिशन साइन कर सकते हैं और स्थानीय लेवल पर अवेयरनेस फैला सकते हैं।
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