राजस्थान में खतरनाक Cough Syrup से मासूम की मौत, जयपुर की दवा कंपनी जांच के घेरे में

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Cough Syrup से मासूम की मौत: राजस्थान में क्यों जांच के घेरे में है जयपुर की सप्लायर फर्म?

राजस्थान में कफ सिरप (Cough Syrup) पीने से एक और मासूम की मौत का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। भरतपुर के मलाह गांव में खांसी की सिरप पीने से एक दो महीने के मासूम बच्चे की जान चली गई, जबकि दो अन्य बच्चे बीमार पड़ गए। इस दवा की सप्लाई जयपुर की केसन फार्मा फर्म ने की थी, जो पहले भी सरकारी एजेंसियों द्वारा डिबार की जा चुकी है। यह घटना नि:शुल्क दवा योजना के अंतर्गत सरकारी अस्पतालों से दी गई दवा से जुड़ी है, जिसने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। इससे पहले सीकर में भी एक मासूम की मौत ऐसी ही शिकायत के बाद हुई थी, जिसके बाद अब राज्य सरकार ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात कही है।

यह बेहद गंभीर विषय है कि नि:शुल्क दवा योजना (Free Medicine Scheme) के तहत राज्य के सरकारी अस्पतालों में भेजी गई दवा डेक्सट्रोमेथोर्फन एचबीआर सिरप आईपी 13.5 मिग्रा 5 मिली (440) ने मासूम की जान ले ली। इस विवादित सिरप की आपूर्तिकर्ता फर्म जयपुर के सरना डूंगर औद्योगिक क्षेत्र की केसन फार्मा है, जिसके मालिक वीरेन्द्र कुमार गुप्ता हैं। औषधि नियंत्रक अजय फाटक ने यह स्पष्ट किया है कि यह कंपनी पहले भी राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (RMSCL) में डिबार (Debarred) की जा चुकी है, यानी इसे सरकारी सप्लाई के लिए अयोग्य ठहराया गया था। ऐसे में यह सवाल उठता है कि एक डिबार की गई कंपनी को फिर से इतनी महत्वपूर्ण दवा सप्लाई करने का कॉन्ट्रैक्ट कैसे मिला? सरकार और नियामक संस्थाओं को इस गंभीर चूक की जिम्मेदारी तय करनी होगी ताकि बच्चों के जीवन से खिलवाड़ न हो। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दवा, जो जीवन बचाने के लिए होती है, वह जान लेने का कारण बन रही है।

जब दिल्ली में भी हुई थी ‘Cough Syrup‘ से गड़बड़ी

यह पहली बार नहीं है जब डेक्सट्रोमेथोर्फन (Dextromethorphan) दवा पर सवाल उठे हों। चार साल पहले, दिल्ली के एक चिल्ड्रन हॉस्पिटल में इसी डेक्सट्रोमेथोर्फन दवा के सेवन से 16 बच्चों की तबियत गंभीर रूप से बिगड़ गई थी। दुख की बात यह थी कि इनमें से तीन मासूमों की इलाज के दौरान मौत हो गई थी। उस घटना के बाद, स्वास्थ्य मंत्रालय की एक विस्तृत रिपोर्ट में इस दवा में पाई गई गड़बड़ी का खुलासा हुआ था, जिसके बाद इस पर अस्थायी रोक भी लगाई गई थी। यह उदाहरण दिखाता है कि डेक्सट्रोमेथोर्फन युक्त कफ सिरप का इस्तेमाल बच्चों के लिए कितना खतरनाक हो सकता है अगर इसकी क्वालिटी या डोज़िंग (dosing) में कोई भी चूक हो। इसलिए, सरकारी सप्लाई में क्वालिटी कंट्रोल (Quality Control) और मैन्युफैक्चरिंग स्टैंडर्ड्स (Manufacturing Standards) को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखना अत्यंत आवश्यक है, खासकर जब बात बच्चों की दवाओं की हो। इस तरह के मामलों को देखते हुए, पेरेंट्स (Parents) को भी अपने बच्चों को सरकारी या प्राइवेट किसी भी सोर्स से मिली दवा देने से पहले पूरी सावधानी बरतनी चाहिए और डॉक्टर से डोज़ की पुष्टि ज़रूर करनी चाहिए।

जांच के दायरे में ये गंभीर सवाल

भरतपुर जिले के बयाना के मलाह गांव की घटना का सीधा संबंध कफ सिरप से है। मृतक बच्चे के चाचा, जयप्रवेश, ने बताया कि 18 सितंबर को परिवार के तीन बच्चों – साक्षी (4), विराट (6) और दो महीने के सम्राट – को जुकाम-खांसी की शिकायत हुई थी। उन्हें गांव के पीएचसी (PHC) से दवा दिलाई गई थी। घर आकर जब सभी बच्चों को यह सिरप दी गई, तो उनकी तबियत और ज़्यादा बिगड़ गई, जिससे छोटे मासूम सम्राट की जान चली गई। यह घटना स्वास्थ्य और औषधि प्रशासन की पूरी चेन (chain) पर गंभीर सवाल खड़े करती है:

  • क्या दवा निर्माता (Manufacturer) ने घटिया दवा बनाई? क्वालिटी टेस्टिंग के मानकों को क्या नज़रअंदाज़ किया गया?
  • क्या क्वालिटी जांच में घटिया दवा को पास कर दिया गया? यदि दवा मानकों पर खरी नहीं उतरी, तो टेस्टिंग लैब्स (Testing Labs) की क्या जिम्मेदारी है?
  • यदि दवा मानकों के अनुसार थी, तो सप्लाई के बाद वह अमानक (Substandard) कैसे हुई? भंडारण और परिवहन के दौरान क्या कोई गड़बड़ी हुई?
  • क्या अस्पतालों का भंडारण सिस्टम सही नहीं था? दवा को स्टोर करने के लिए निर्धारित तापमान और परिस्थितियों का पालन क्यों नहीं किया गया?
  • क्या वितरण केंद्र का भंडारण सही नहीं था? सप्लाई चेन में कहाँ पर कमी रही?

उप मुख्यमंत्री Diya Kumari (जोधपुर में) ने इस मामले की गंभीरता को स्वीकार किया है और कहा है, “सरकार इस मामले में गंभीर है। इसकी जांच जारी है। रिपोर्ट आने के बाद कोई दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।” अब यह देखना होगा कि इस जांच में कौन दोषी पाया जाता है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं। बच्चों की सुरक्षा हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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